संख्यकारिका हिंदी सारांश नोट्स | Sankhya karika hindi notes

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संख्यकारिका हिंदी सारांश

भारतीय दर्शन में षड् दर्शन की प्रधानता है । ये षड्दर्शन इस प्रकार है – न्याय दर्शन , वैशेषिक दर्शन , सांख्यदर्शन, योगदर्शन, मीमांसा दर्शन ( पूर्वमीमांसा), वेदान्त दर्शन ( उत्तर मीमांसा)। इन षड् दर्शन में सांख्य दर्शन बहुत महत्वपूर्ण है क्यों कि सृष्टि प्रक्रिया को समझने केलिए सांख्य दर्शन बहुत उपयोगी है ।

सांख्य दर्शन की प्रवर्तक कौन है ?

सांख्य दर्शन की सूत्रकार – महर्षि कपिल मुनि है। भागवत महापुराण के अनुसार कपिल मुनि ने अपने माता श्री देवहूति को सांख्य शास्त्र की उपदेश किया है । जो कि कपिल उपाख्यान के नाम से प्रचलित है ।

सांख्यदर्शन की प्रमुख ग्रंथ

  • सांख्यसूत्र- महर्षि कपिल मुनि
  • सांख्यसूत्र – अनिरुद्ध वृत्ति – आचार्य अनिरुद्ध
  • सांख्य वृत्तीसार- महादेव सरस्वती
  • सांख्य प्रवचन भाष्य – विज्ञान भिक्षु
  • लघुसांख्य वृत्ति – (विज्ञान भिक्षु के भाष्य पर )वैयाकरण विद् नागेश भट्ट
  • तत्त्वसमास अथवा समास सूत्र -लेखक का नाम अज्ञात है
  • सर्वोपकरिणी-लेखक का नाम अज्ञात है
  • सांख्य सूत्र विवरण -लेखक का नाम अज्ञात है
  • सांख्य क्रम दीपिका- अनामव्याख्या-
  • सांख्यकारिका – ईश्वरकृष्ण (100- 450 ई.)
  • संख्यतत्त्व कॉमोदी – वाचस्पतिमिश्र

सांख्य कारिका पर लिखी गई भाष्य और टिकाएं

  • गौड़पाद भाष्य- आचार्य गौडपाद
  • माठर वृत्ति- आचार्य माठर
  • जयमंगला- आचार्य शंकर के नाम पर है ( सत्य है या नही कोई प्रमाण नही है । )
  • युक्तिदीपिका- लेखक अज्ञात
  • सांख्यतत्त्व कौमुदी- वाचस्पतिमिश्र ( ये भी सांख्य कारिका की ही विस्तृत टिका है )
  • सांख्यतत्त्व कौमुदी-की अनेक टिकाएं
  • सारबोधिनी- शिवनारायण शास्त्री
  • विद्वततोषिणी- बलराम उदासीन
  • किरणावली- श्रीकृष्ण बल्लभाचार्य
  • सुषमा टिका- हरिराम शुक्ल
  • तत्त्वप्रकाशिका – पंचानन शास्त्री मुसलगावकर
  • पूर्णिमाटिका- पंचानन भट्ट
  • आवरणवारिणी- कृष्णनाथ न्यायपंचानन
  • प्रभाहिन्दी टिका- आद्याप्रसाद
  • ज्योतिष्मती- रमाशंकर भट्टाचार्य
  • अंग्रजीटिका- गंगनाथ झा

सांख्य कारिका (दर्शन ) के सिद्धांत

  • सांख्य कारिका में – 72 कारिका है । इसकी 69 कारिका पर गौडपाद भाष्य लिखे है ।
  • प्रमाण- सांख्यमतानुसार 3 प्रमाण मान्य है । प्रत्यक्ष , अनुमान तथा शब्द
  • मोक्ष- सांख्य दर्शन के अनुसार आत्यन्तिक दुःख की निवृत्ति ही ।
  • सांख्य दर्शन के अनुसार दुःख त्रय क्या है ?
  • आध्यात्मिक, आधिभौतिक, आधिदैविक
  • सांख्य दर्शन कितने प्रकार की मोक्ष मानते है ? दो प्रकार की – जीवन् मुक्ति , विदेह मुक्ति ।
  • ईश्वर- प्राचीन सांख्य विद्वान ईश्वर को नही मानते है । किंतु विज्ञान भुक्षु के मत में सांख्य निरिश्वर वादी नही है।
  • सृष्टि- सांख्य मत में प्रकृति और पुरुष के संयोग से सृष्टि होती है । इसलिए सांख्य द्वैतवादी भी कहे जाते है ।
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सांख्यदर्शन की 25 तत्त्व –

  • प्रकृति (1)
  • पुरुष (2)
  • महत् (बुद्धि)(3)
  • अहँकार(4)
  • मन(5)
  • पंचज्ञानेंद्रिय(6-10)
  • पंचकर्मेन्द्रिय (11-15)
  • पंच तन्मात्राएँ (16-20)
  • पंच महाभूत (21-25)

सांख्य दर्शन के अनुसार पुरुष क्या है ?

पुरुष (ज्ञ) – सांख्यकारिका के अनुसार व्यक्त, अव्यक्त, ज्ञ – ये तीन प्रमेय पदार्थों की ज्ञान से मोक्ष की प्राप्ति कहा है । पुरुष को ही ज्ञ कहा है ।

सांख्य मूल रूप से दो तत्त्व को नित्य मानता है – पुरुष और प्रकृति । इनमे पुरुष को ही आत्मा कहा जा सकता है ।

पुरुष चैतन्य रूप है , असंग है , पुरुष में किसी प्रकार की विकार परिणाम उत्पन्न नहीँ होता , वह अविकारी है ।

संकल्प श्रद्धा ,धैर्य , भाव , क्रियाएं ये सभी मन ,बुद्धि, और अहंकार में संबद्ध है , पुरुष में नहीँ। सुख दुःखादी पुरुष में प्रतीति होती परंतु वह बस्तुतः पुरुष में नही होती है ।

पुरुष को दो प्रकार माना गया है – बद्ध पुरुष , मुक्त पुरुष ।

सांख्यदर्शन के अनुसार प्रकृति क्या है ?

प्रकृति- सांख्य का दूसरा नित्यतत्त्व प्रकृति है । इसी को प्रधान , अव्यक्त , मुलाप्रकृति भी कहते है ।

प्रकृति से महत् आदि 23 तत्त्व की उत्पत्ति होती है । इन्द्रिय गोचर न होने के कारण इसे अव्यक्त कहते है । प्रलय काल मे सभी भौतिक तत्त्व इसमें समाहित हो जाते है । इसलिए इसको प्रधान भी कहते है ।

सत्त्व ,रजस् ,तमस् इन तीनो गुणों की साम्यावस्था का नाम ही प्रकृति है ।

प्रलयवस्था में जब सृष्टि नही होती तब सांख्य दो तत्त्व को मानता है प्राकृत जड़ और पुरुष चेतन । पुरुष का प्रकाश जड़ प्रकृति पर पड़ती है तो उसकी गुणों में क्षोभ उत्त्पन्न होते है तथा वे एक दूसरे को दवाने की प्रयास करते है । परिणाम स्वरूप सृष्टि कार्य प्रारंभ होती है। इस क्रम महत् , अहंकार आदि 23 तत्त्वों की उत्पत्ति होती है ।

प्रकृति किसी से उत्पन्न नही हुई है । प्रकृति से ही सब कुछ उत्त्पन्न हुआ है । इसलिए प्रकृति पूर्णतया स्वतंत्र है और नित्य है ।

सांख्यदर्शन के अनुसार सत्कार्यवाद क्या है ?

सत्कार्यवाद सांख्यदर्शन का महत्त्वपूर्ण सिद्धांत है ।

सत्कार्यवाद बाद के अनुसार – सृष्टि की अवस्था मे कारण रूप प्रकृति से महत् आदि व्यक्त पदार्थ इसलिए उत्पन्न होते है , क्यों कि वे अपने कारण प्रकृति में पहले से विद्यमान रहते है । सृष्टि उनकी अभिव्यक्ति मात्र है ।

प्रलयकाल मे सभी कार्यपदार्थ अपने अपने कारण में विलीन होता रहता है और अन्त में सभी प्रकृति में विलीन हो जाते है । अंततः प्रकृति ही शेष रह जाती है।

असदकरणादुपादानग्रहणात् सर्वसम्भवाभावात् ।
शक्तस्य शक्यकरणात् कारणभावाच्च सत्कार्यम् ।।

F.A.Q – सांख्यदर्शन प्रश्नोत्तरि

Q. सांख्यदर्शन के अनुसार प्रमाण कितने है ?

उ- सांख्यदर्शन के अनुसार प्रमाण- प्रत्यक्ष , अनुमान तथा शब्द

Q. सांख्यकारिका के कितने कारिका पर गौडपादभाष्य है ?

उ- आप को Comment Box में लिखना है ।

Q. महत् (बुद्धि) और अहँकार (A) प्रकृति होता है । (B) विकृति होता है । (C) न प्रकृति होता है और न विकृति होता है । (C) प्रकृति – विकृति दोनों होता है । सहि उत्तर क्या है ?

उ- C

Q. सत्कार्यवाद किस दर्शन की सिद्धान्त है ?

उ- सांख्यदर्शन

Q. साख्यतत्त्वकौमुदि का रचनाकार कौन है ?

उ- वाचस्पति मिश्र

Q. सांख्यदर्शन के अनुसार तत्त्व कितने है ?

उत्तर- आप को Comment Box में लिखना है ।

Q. विज्ञान भुक्षु के मत में सांख्य निरिश्वर वादी है या नही ।

उ- निरिश्वर वादी नही है अर्थात ईश्वरवादि है।

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