bauddha

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 यहाँ दर्शपौर्णमासीय याग प्रकरण में प्रयुक्त होनेवाले ब्रीहियों का प्रोक्षण (जल के द्वारा ब्रीहि को सींचना प्रोक्षण कहलाता है  ) और किसी अन्य विधि से प्राप्त नही है । 

उक्त विधि ही तत्कालीन प्रोक्षण का विधान करती है जो पहले सर्वथा पहले अप्राप्त तथा अनिर्दिष्ट था । अतः अप्राप्त प्रोक्षणरूप अर्थ का विधान करने के कारण ही इसे अपूर्वविधि कहते है । 

B- नियमविधि:- नानासाधनसाध्यक्रियायामेकसाधन प्राप्तावप्राप्त स्या परसाधनस्य प्रापको विधिर्नियमविधिः

यथाहु: – विधिरत्यन्तमप्राप्ते नियम: पाक्षिके सति। तंत्र चान्यत्र च प्राप्ते परिसंख्येति गीयते ।।

अर्थ: –  

(मिमांसा परिभाषा के अनुसार – यश्च पक्षे प्राप्तमर्थं नियमयति स नियमविधिः। )

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