जगन्नाथ पुरी रथयात्रा , पौराणिक कथा
ओडिशा एक सांस्कृतिक रूप से संवृद्ध प्रदेश है । सनातन हिन्दू संस्कृति के अनुसार भारत की प्रसिद्ध चारधाम में से एक धाम है जगन्नाथ पुरी। यहां पर प्रतिवर्ष करोड़ो दर्शनार्थी जगन्नाथ भगवान की दर्शन केलिए आते है । इनमे से जगन्नाथ रथयात्रा विशिष्ट है। रथयात्रा के दिन देश-विदेश से करोड़ो भक्त जगन्नाथ भगवान के दर्शन केलिए पूरी धाम आते है । कहा जाता है जो भक्त मंदिर में दर्शन केलिए नही जा पाते उनको दर्शन देने केलिए स्वयं जगन्नाथ अपने बड़े भाई भलभद्र और भगिनी सुभद्रा के साथ मंदिर से बाहर आते है और प्रिय भक्तों को दर्शन देते है।
Fastival | Date |
जगन्नाथ पुरी रथयात्रा | 20th JUNE 2023 |
इसवर्ष कब मनाया जाएगा रथयात्रा 2023
जैसे की पारंपरिक रीति के अनुसार आषाढ़ शुक्लपक्ष द्वितीया तिथि को रथ यात्रा मनाया जाता है , इसवर्ष 20th जून 2023 को द्वितीया तिथि है । इसी दिन मनाया जाएगा रथयात्रा। इसदिन करोड़ो भक्त रथयात्रा दर्शन केलिए पूरी धाम में आएंगे और रथारूढ़ जगन्नाथ भगवान के दर्शन करके पूण्य की भागी होंगे।
जगन्नाथ रथयात्रा कब निकाली जाती है
पारंपरिक कथाओं के अनुसार स्नानपुर्णिमा (ज्येष्ठ पूर्णिमा) को भगवान जगन्नाथ , भलभद्र और सुभद्रा जी को खूब स्नान कराया जाता है । जिसके कारण जगन्नाथ जी को प्रवल ज्वर(बुखार ) हो जाता है । तब मंदिर की पट 15 दिन केलिए बन्द रहता है । भक्तों को दर्शन नही होते है। इसी ज्वर की उपचार केलिए माता लक्ष्मी जी औषधि लाने केलिए मंदिर से बाहर जाती है । उसी बीच मे जगन्नाथ जी थोड़ा स्वस्थ होने पर आषाढ़ मास , शुक्लपक्ष, द्वतिया तिथि को जगन्नाथ भगवान अपने बड़े भाई भलभद्र और भगिनी सुभद्रा के साथ रथ में विराजमान हो कर अपने प्रिय मौसी गुंडिचा के घर गुंडिचा मंदिर में चले जाते है । इसी को जगन्नाथ रथ यात्रा कहा जाता है । निमित्त जो भी हो जगन्नाथ भगवान अपने भक्तों को दर्शन देने केलिए मंदिर से बाहर आते है ।
इन्द्रद्युम्न और गुंडिचा कौन है
स्कन्द पुराण के पौराणिक कथा के अनुसार अवन्तिका नगरी ( आजकल को उज्जैन ) के राजा महाराजा इन्द्रद्युम्न को स्वप्न हुआ की – “तुम मेरे धाम पुरुषोत्तम क्षेत्र में जा कर मेरे आराधना करो सब और मंगल होगा ।” स्वप्न के अनुसार ब्राह्मणों के द्वारा पुरुषोत्तम क्षेत्र (जगन्नाथ पूरी ) की खोज कराई और महाराजा इन्द्रद्युम्न अपनी पत्नी गुंडिचा और प्रजासहित आके पूरी में बस गए । जब भगवान ने पुनः स्वप्न में बताया कि समुद्र तट बांकीमुहाण में बड़े बड़े लकड़ी लगी है उसको ला के मेरे प्रतिमा की निर्माण करो । तब राजा ने संकीर्तन करते हुए उन लकड़ियों को लाये । और एक बृद्ध बढ़ेई (कारीगर) के सर्त (21 दिन तक कोई भी दरवाज़ा नही खुलेगा) अनुसार उनको लकड़ी सहित बन्द कर दिए एक विशाल कार्यशाला में । महारानी गुंडिचा प्रतिदिन आके कान लगाकर सुनती थी की ठक ठक आवाज आती है कि नहीं । कुछ दिन के बाद आवाज आना बन्द हो गया ,सब घबरा कर और आसंका से 21 दिन से पहले ही दरवाजा खोल दिये । तब जो दृश्य देखने को मिली सब दुःखी हो गए । तीनो देव और भगवान की मूर्ति आधा आधा बनी हुई थी । उसी रात राजा को भगवान ने स्वप्न में बताया कि यही मेरे कलियुग की स्वरूप है इसीकी पूजा करो । जगन्नाथ भगवान के प्रतिमा की निर्माण में महारानी गुंडिचा की अपूर्वा भक्ति के कारण उन्हें मौसी मानते है जगन्नाथ भगवान । और मौसी की न्यौते पर रथ में बैठ कर चले जाते है गुंडिचा माता के घर ।
जगन्नाथ भगवान की आधा क्यों है , मंदिर की निर्माण किसने किया ,क्यों किया , नवकलेवर की रहस्य ये सभी पुराणों में वर्णित है इसकी चर्चा हम अन्य लेख में करेंगे शिला लेख और पुराणों के तथ्यों के आधार पर । आप विस्तृत में जरूर पढ़िए ।
जगन्नाथ भगवान के रहस्य
यूं तो जगन्नाथ भगवान की बहुत सारे कथा रहस्यात्मक है ।
- जगन्नाथ भगवान के रहस्यात्मक कथाओं का वर्णन भक्तमाल नामक ग्रंथ में भक्तो के साथ किये लीलाओं का विस्तृत वर्णन मिलता है ।
- कुछ लोगों का मानना है कि नीलचक्र पर लगाया हुआ ध्वज हवा के उल्टा दिशा विपरीत में फहरता है , ये सत्य है या नहीँ !!!
- कुछ लोगों का मानना है की जगन्नाथ भगवान के नवकलेवर में जो तत्त्व रखा जाता है वो हृदय है ? मेरे अध्ययन के अनुसार वो हृदय नहीँ है तो फिर क्या है । इस विषय की चर्चा अन्य लेख में करेंगे।
- जगन्नाथ भलभद्र और सुभद्रा की मूर्ति अधूरी क्यों है इसकी पौराणिक कथा क्या है ?
- जगन्नाथ भलभद्र और सुभद्रा की मूर्ति 12 साल में नूतन बनाई जाती है क्यों ।
- इन विषयों की चर्चा अन्य लेख में करेंगे।
संख्या | किस का रथ | रथ का नाम | पहिये कि संख्या | रथ की ऊँचाई | लकडी की संख्या |
1 | जगन्नाथ | नन्दिघोष | 16 | 45 फिट/13.5 मिटर | 832 |
2 | भलभद्र | तालध्वज | 14 | 42 फिट/13.2 मिटर | 763 |
3 | सुभद्रा | दर्पदलन | 12 | 42 फिट/12.9 मिटर | 593 |
जगन्नाथ पुरी रथ की सम्पूर्ण विवरण
- जगन्नाथ पुरी रथ की निर्माण कार्य अक्षय तृतीया से प्रारम्भ होती है । इसदिन धरती की पूजा के साथ समस्त काष्ठ की पूजा करके रथ निर्माण किया जाता है । प्रतिवर्ष नूतन लकड़ी लाया जाता है रथ केलिए। बहुत कुशल कलाकृति से रथ को सुनिर्मित किया जाता है ।
- जगन्नाथ के रथ – इस रथ की ऊँचाई 45 फिट है, इसे नन्दिघोष कहते है।, इस में 16 पहिये होते है , जिसका व्यास 7 फिट का होता है । इस रथ को लाल और पीले चंदिया से सजाया जाता है । यह ओडिशा के चांदीपुर से निर्मित हो कर आता है । इस रथ की सारथी दारुक चलाते है, इस रथ की सुरक्षा गरुड़ करते है, इसरथ में जो झंडा लगाया जाता है उसकी नाम त्रिलोक्यमोहिनी है, इसमें चार घोड़े लगाए जाते है। इस रथ में वर्षा, गोबर्धन, कृष्णा, नरसिंघा, राम, नारायण, त्रिविक्रम, हनुमान व रूद्र विराजमान रहते है. इसे जिस रस्सी से खींचते है, उसे शंखचुड नामक सर्प कहते है।
- भलभद्र के रथ – इस रथ की ऊँचाई 42 फीट ऊँचा , इसे तालध्वज कहते है। इस रथ मे 14 पहिये लगते है , इसको लाल , नीले, हरे रंग के कपड़े से सजाया जाता है । इसकी रक्षा वासुदेव करते है । और सारथी मातुलि है । इसमें गणेश, कार्तिक,सर्वमंगला, प्रलाम्बरी, हटायुध्य, मृत्युंजय, नाताम्वारा, मुक्तेश्वर, शेषदेव विराजमान रहते है. इसमें जो झंडा लहराता है, उसे उनानी कहते है. इसे जिस रस्सी से खींचते है, उसे बासुकी नाग कहते है।
- सुभद्रा के रथ- इस रथ की ऊँचाई 42 फिट है , इसे दर्पदलन कहते है।, इसमें 12 पहिये है, इस रथ को लाल , काले रंग की चंदुआ से सजाया जाता है । इसकी सारथी अर्जुन है । इसकी रक्षा जयमंगला करती है , इसमें जो झंडा लहराती है उसकी नाम है , इसमें चंडी, चामुंडा, उग्रतारा, वनदुर्गा, शुलिदुर्गा, वाराही, श्यामकाली, मंगला, विमला विराजमान होती है. इसे जिस रस्सी से खींचते है, उसे स्वर्णचुड नाम के नागिन कहते है.
जगन्नाथ रथयात्रा की विधि क्या क्या है।
- प्रातः जगन्नाथ जी के सेवा पूजा से निवृत्त करके मुहूर्त के अनुसार 8 am के आसपास सबसे पहले सेवापंडाओ के द्वारा भलभद्र जी श्रीमंदिर से बाहर आएंगे ।
- भलभद्र जी के बाद पीछे पीछे श्री सुभद्रा जी मंदिर से बाहर आएंगे । जब मंदिर के बाईसी पाहाच से आगे होंगे सुभद्रा जी तब अन्त में श्री जगन्नाथ महाप्रभु मंदिर से बाहर आएंगे
- ये सभी दृश्य आप live DD national tv पर और यूट्यूब पर भी दर्शन कर सकते है ।
- एक एक करके तीनों ठाकुर रथ पर विराजमान होंगे । इसके पश्चात पूरी के राजा गजपती महाराज दिव्यसिंह देव जी के द्वारा चंदन छिड़क कर सोने की झाड़ू से झाड़ू लगाया जाता है इस विधि को छेरापहँरा कहा जाता है ।
- एक एक करके सभी रथ के ऊपर छेरा पहारा के उपरांत सभी रथ पर घोड़े सजाया जाता है । जगन्नाथ रथ में काले घोड़े। बलराम जी के रथ में सफेद घोड़े लगाए जाते है ।
- इसके पश्चात शंखनाद , घंटानाद , और संकीर्तन से गूंज उठता है समग्र पूरी धाम । और रथ खींचना परम्भ होता है ।
- पहले भलभद्र जी का रथ खींचा जाता है । उसके बाद सुभद्रा जीकी, उसके बाद जगन्नाथ जी के रथ खींचा जाता है भक्तों के द्वारा । दोप्रहर की 3 बजे के आसपास तक गुंडिचा मंदिर तक रथ पहुंच जाते है और प्रायः रथ के ऊपर ही उस दिन की पूजा अर्चना सम्पर्ण किया जाता है । अगले तिथि से प्रारंभ होती है भगवान की 10 अवतारवेश (प्रतिदिन 10 तिथि के अनुसार 10 अवतार के अनुसार जगन्नाथ जी को बस्त्र आभूषण पहनाया जाता है )
जगन्नाथ भगवान की 10 अवतार
प्रथम अवतार | मत्स्य |
द्वितीय अवतार | कूर्म |
तृतीय अवतार | वराह |
चतुर्थअवतार | नरसिंह |
पंचमअवतार | वामन |
षष्ठअवतार | परशुराम |
सप्तम अवतार | राम |
अष्टम अवतार | कृष्ण |
नवम अवतार | बुद्ध |
दशम अवतार | कल्कि |
FAQ. रोचक प्रश्न
Q.जगन्नाथ के रथ का नाम क्या है ।
नन्दिघोष
Q.पुरी के गजपति महाराज के नाम क्या है।
दिव्यसिंह देव
Q.पुरी कैन से राज्य में स्थित है।
ओडीशा
Q.भगवान कितने अवतार है।
दश
Q.जगन्नाथ जी के मौसी की नाम क्या है ।
गुण्डीचा