बाबरी मस्जीद् का निर्माण 1527 को बाबर के आदेस अनुसार मीर बाकी ने कराया था और इस का नाम बाबरी मस्जीद् रखा। यह मस्जीद् पुरे दुनियां मे बाबरी मस्जीद् जन्मस्थान की नाम से जाने जाता है। अयोध्या जिल्ले में राम कोट पहाडी पर यह मस्जीद् वनायागया था। लॉर्ड विलियम बैन्टिक (1828–1833) के वास्तुकार ग्राहम पिकफोर्ड के पुस्तक “हिस्टोरिक स्ट्रक्चर्स ऑफ़ अवध” (अवध अर्थात अयोध्या) के अनुसार मस्जीद् के निचलेभाग कि कलाकृति ओर उपरी भाग की कलाकृति अलग अलग है।
अयोध्या धर्मस्थल विवाद: एक ऐतिहासिक विवेचना
प्रारंभिक काल (सोलहवीं से उन्नीसवीं शताब्दी):
कुछ का कहना हे की मुगलकालीन सैन्य अधिकारी मीर बाकी द्वारा 1528 ईस्वी में अयोध्या नगरी में एक इस्लामिक मस्जीद्की स्थापना की गई। स्थानीय हिंदू समुदाय का विश्वास रहा है कि यह भूमि भगवान राम की जन्मभूमि पर स्थित है। 1853 में पहली बार इस स्थान को लेकर सामुदायिक तनाव उत्पन्न हुआ जब एक हिंदू धार्मिक संगठन ने परिसर के बाहरी हिस्से पर अपना अधिकार जताया।
औपनिवेशिक युग (1859-1947):
ब्रिटिश प्रशासन ने 1859 में परिसर को विभाजित कर दोनों समुदायों के लिए अलग-अलग पूजा स्थल निर्धारित किए। 1949 में एक विवादास्पद घटना में हिंदू देवता की मूर्तियाँ परिसर के अंदर पाई गईं, जिसके बाद सरकार ने पूरे परिसर को सील कर दिया।
स्वतंत्रोत्तर काल (1950-1980):
इस अवधि में विवाद ने कानूनी रूप ले लिया। 1950 से कई न्यायिक याचिकाएँ दायर हुईं। 1980 के दशक में एक हिंदू संगठन ने मंदिर निर्माण के लिए जनसमर्थन जुटाना शुरू किया। 1986 में न्यायिक आदेश से परिसर का ताला खुला।
अयोध्या आंदोलन: 1990 की महत्वपूर्ण घटनाएँ
पूर्ववृत्त:
सन् 1990 में अयोध्या में हुए राजनीतिक आंदोलन के दौरान एक महत्वपूर्ण घटना घटी जब तत्कालीन प्रदेश सरकार ने धार्मिक कार्यकर्ताओं पर पुलिस कार्रवाई का निर्णय लिया। 30 अक्टूबर का यह दिन भारतीय राजनीतिक इतिहास में एक विशेष स्थान रखता है।
मुख्य घटनाएँ:
- पृष्ठभूमि: एक धार्मिक संगठन द्वारा आयोजित कार्यक्रम में बड़ी संख्या में लोगों ने भाग लिया
- प्रशासनिक प्रतिक्रिया: राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए कठोर कदम उठाए
- संघर्ष का क्षेत्र: प्रमुख धार्मिक स्थल के आस-पास के क्षेत्र में सुरक्षा बलों और प्रदर्शनकारियों के बीच तनाव
घटना का विस्तृत ब्यौरा:
- सुरक्षा बलों द्वारा प्रारंभिक रूप से नियंत्रण के उपाय किए गए
- विभिन्न समाचार स्रोतों के अनुसार हताहतों की संख्या में भिन्नता
- अनेक लोगों को चोटें आईं
- घटना में शामिल लोगों ने मृतकों को विशेष सम्मान दिया
राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ:
- राजनीतिक नेताओं को विशेष उपनाम मिले
- कुछ वर्गों में विशेष राजनीतिक दलों के प्रति समर्थन में वृद्धि
- प्रदेश की राजनीति में नए प्रकार के विभाजन उत्पन्न हुए
विवादास्पद पहलू:
- सुरक्षा बलों के कार्यवाही के तरीके पर प्रश्न
- मूलभूत अधिकारों के उल्लंघन के आरोप
- सरकार के इरादों पर संदेह व्यक्त किया गया
दीर्घकालिक प्रभाव:
- राज्य और केंद्र सरकार के संबंधों में खटास
- राष्ट्रीय राजनीतिक चर्चा में धार्मिक स्थल का मुद्दा प्रमुख हुआ
- भविष्य की घटनाओं के लिए पृष्ठभूमि तैयार हुई
संघर्ष का चरम (1990-1992):
1990 के दशक में राजनीतिक दलों ने इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया। 6 दिसंबर 1992 को एक बड़ी भीड़ ने पुराने ढाँचे को ध्वस्त कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप देशव्यापी सांप्रदायिक हिंसा हुई।
सावरमती एक्सप्रेस गोधरा कांड: पूरी जानकारी
27 फरवरी 2002 को गुजरात के गोधरा रेलवे स्टेशन पर सावरमती एक्सप्रेस ट्रेन के एस-6 कोच में भीषण आग लगने की घटना हुई थी, जिसमें 59 लोगों की मौत हो गई थी। यह घटना भारतीय इतिहास के सबसे दुखद और विवादास्पद घटनाओं में से एक मानी जाती है।
घटना का विवरण:
- सुबह 7:43 बजे गोधरा स्टेशन पर ट्रेन रुकी
- एस-6 कोच में अचानक आग लग गई
- आग इतनी तेज थी कि लोग बाहर नहीं निकल पाए
- 59 यात्री (मुख्यतः वच्चे, वुढे और महिलाएं कार सेवक) जलकर मर गए
घटना के कारण:
- प्रारंभिक आरोप: स्थानीय मुस्लिम समुदाय द्वारा ट्रेन पर हमला
- जांच आयोग: नानावती आयोग ने साजिश का सिद्धांत दिया
तत्कालीन प्रतिक्रिया:
- पूरे गुजरात में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे
- कई हफ्तों तक हिंसा जारी रही
- सैकड़ों लोग मारे गए
राजनीतिक प्रभाव:
- तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर आलोचना
- अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को ठेस
कानूनी प्रक्रिया:
- 31 लोगों को मौत की सजा सुनाई गई (बाद में माफ)
- सुप्रीम कोर्ट द्वारा विशेष जांच टीम गठित
- 2011 में अदालत ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया
न्यायिक प्रक्रिया (2003-2019):
पुरातात्विक अनुसंधान संस्था द्वारा 2003 में कराए गए उत्खनन में प्राचीन हिंदू मंदिर के अवशेष मिलने का दावा किया गया। 2019 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने ऐतिहासिक निर्णय देते हुए भूमि का अधिकार हिंदू पक्ष को दिया और मुस्लिम पक्ष को वैकल्पिक भूमि आवंटित करने का आदेश दिया।
समकालीन परिदृश्य:
वर्ष 2020 में राम मंदिर के निर्माण का औपचारिक शुभारंभ हुआ।